"रैन बसेरा में जिंदगी एक अनुभव"
"रैन बसेरा में जिंदगी एक अनुभव"
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भारत की आजादी तप,तपस्या और त्याग के बदौलत आई है। कितने ही अनगिनत सपूतों ने अपने भाई,पिता, मां-बहन को आजादी का चादर ओढ़ा कर देश के लिए न्योछावर कर दिया। स्थिति पूर्व में भी दयनीय रही है और वर्तमान में भी कई परिपेक्ष्य में दयनीय है। जो स्थिति आजादी के पूर्व,आजादी के वक्त या आजादी के कुछ समय बाद तक थी वही स्थिति आज भी कई क्षेत्रों में है। इसे पिछले कुछ दिनों पूर्व के अनुभवों से जोड़ने का प्रयास करते है।
18 फरवरी2023 को निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन स्थित दिल्ली सरकार के एक रैन बसेरा में जाना हुआ। लगभग 2 घंटे का समय इस परिसर में मैंने बिताया उसका कुछ अनुभव मैं साझा कर रहा हूं। यह काफी सही और उन्नत मॉडल है जो लोग बेघर है उनके रहने के ठिकाने,खाने पीने,स्वास्थ्य,शिक्षा आदि की सुविधा सरकार की तरफ से बेहतर ढंग से हो पा रही है।
वहां पर रैन बसेरा दो वर्गों में विभाजित था।
पहला स्थाई रैन बसेरा था। जिसका ढांचा किसी बड़े से हॉल की तरह था उसमें 20-25 लोग एक हॉल में रह रहे थे। इसमें कोई 2,3,4 या काफी साल से रहे थे। कोई कामगार लोग थे।कोई किसी संस्थान में नौकरी करने वाले लोग थे। जब हमने स्थायी रैन बसेरे में रह रहे लोगों से बात की तो उनका यही कहना था कि हमारी जितनी भी मूलभूत सुविधाएं है जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य,रोटी,मकान वो सभी हमे सरकार की तरफ से बिलकुल मुफ्त मिल रही है। किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं है।
दूसरा रैन बसेरा अस्थायी रैन बसेरा था। यह अस्थायी रैन बसेरा वैसे लोगों के लिए थे जो कहीं सड़क पर रह रहे थे उन्हें सरकार के कर्मचारी की मदद से इन रैन बसेरों में जगह मुहैया कराई गई थी। इनकी स्थिति काफी बुरी और बदतर थी। इनसे जब हमने बात करने की कोशिश की थी इनका कहना था:-
•भोजन अच्छे गुणवत्ता का नहीं मिलता है व समय से नहीं मिलता है।
•हमें स्थायी रैन बसेरों में रहने वाले लोगों की तरह सुविधा नहीं मिलती है।
•पानी की थोड़ी समस्या है। समय से पानी नहीं मिलती है।
• सरकार के द्वारा रोजगार के कोई साधन उपलब्ध नहीं कराए गए है जिसके बदौलत हम अपना जीवन यापन अच्छे से कर सके।
•दो पैसे कमाने के लिए हमको बच्चों के साथ कूड़ा बिनने व भीख मांगने बाहर जाना पड़ता है।
इस तरह के बातों के वर्णन अस्थाई रैन बसेरे में रहने वाले लोगों ने किया।
शिक्षा, स्वास्थ्य के बारे में दोनों प्रकार के रैन बसेरों में रहने वाले लोगों का एक मत था।
शिक्षा - बच्चों के लिया सरकार के द्वारा स्कूल भी खोला गया है। जहां अस्थाई रैन बसेरों में रहने वाले बच्चों के मुकाबले स्थाई रैन बसेरों में रहने वाले बच्चें ज्यादा जाते है। इसके अलाव दोनों प्रकार के रैन बसेरे के बच्चों के लिए शिक्षक और शिक्षिका पढ़ाने आते है और वह दिन के 8 घंटे इन रैन बसेरे में बच्चों को पढ़ाते है। कई बच्चें स्कूल में होने वाले प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर पुरुस्कार भी जीतते है।
स्वास्थ्य - सरकार के द्वारा रैन बसेरा परिसर में ही क्लिनिक है जो बिल्कुल मुफ्त है। यदि किसी भी प्रकार का मामला गंभीर होता है तो क्लिनिक के माध्यम से एंबुलेंस सेवा प्रदान की जाती है और निकटवर्ती या किसी अच्छे अस्पताल में इलाज कराया जाता है। ये सारी सुविधाएं बिल्कुल मुफ्त होती है।
इसी क्रम में रैन बसेरा परिसर में चहलकदमी करते हुए दूसरे शेल्टर में पहुंचे तो वहां मेरी मुलाकात एक शोध करने वाले भैया से हुई। वह दिल्ली विश्वविद्यालय से ही अपना शोध कार्य रैन बसेरा पर कर रहे थे।काफी देर बात चीत करते हुए उनसे वहां के लोगों के द्वारा बताए गए बातों पर थोड़ा विस्तार से बताने के लिए कहा तो उन्होंने हर प्रश्नों का उत्तर बारीकी से हमें दिया।
प्रश्न - क्या खाना लेट से मिलता है और खाने की गुणवत्ता ठीक नहीं है?
उत्तर - हां. खाना लेट मिलने का वजह कई बार दिल्ली की ट्रैफिक जिस वजह से खाना समय पर नहीं आ पाता है। खाना लगभग 10- 15 किलोमीटर दूर से बनकर आता है तो लेट होना स्वाभाविक है। खाने की गुणवत्ता की बात है तो थोड़ा खराब रहता है जैसे कि एक प्रकार के मेन्यू के हिसाब से खाना मिलता है। लेकिन खाना इतना भी खराब नहीं होता है कि वह खाने लायक न हो कुल मिलाकर ठीक ठाक खाना मिलता है।
प्रश्न- जो अस्थाई रैन बसेरे में रह है उनके बच्चें को स्कूल पढ़ने क्यों नही भेजा जाता है?
उत्तर - उन्हें जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन बच्चें के परिजन या माता पिता उसे काम करने के लिए या कूड़ा कचरा चुनने के लिए अपने साथ लेकर चले जाते है तो उस स्थिति में बच्चा कैसे स्कूल जा पायेगा?
प्रश्न- इनके दिनचर्या में सुधार लाने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे है?
उत्तर - काफी प्रयास किए जा रहे है लेकिन जागरूकता के अभाव की वजह से धीरे धीरे सुधार हो रहा है। पूर्व में कई लोगों के जिंदगी में इस रैन बसेरों की बदौलत सुधार आया है और उनकी जिंदगी में आज काफी बदलाव नजर आ रहे है।
इस प्रकार से यह दिन बिल्कुल अनुभवों से भरा दिन था।
निष्कर्ष - इस प्रकार के रैन बसेरों का निर्माण देश के सभी राज्यों में जगह जगह पर होने चाहिए ताकि उनके जीवन में सामाजिक परिवर्तन आ सके।
दिव्यांश गाॅंधी
दिल्ली विश्वविद्यालय
पूर्व छात्र नवोदय विद्यालय
06 मार्च 2023
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