"हाँ जनाब सही सुना आपने वो लड़की है" कविता।

घर की चौखट को लाँघना ठीक वैसा है
जैसे धरती से चाँद का सफ़र तय करना
हाँ जनाब वो लड़की है

पढ़ाई का स्वप्न देख़ना ठीक वैसा है
जैसे प्यार में प्रेमिका से तारे तोड़ लाने के वायदे
घर की चहारदीवारी में क़ैद 
वह सेल्यूलर जेल की क़ैदी सी है
हाँ जनाब सही सुना आपने वो लड़की है

ख़ुद के घरों में जेल की क़ैदी की तरह है वह
जब सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष का उड़ान भरती है
उड़ती पतंग की डोर की तरह डोर काट दी जाती है
सपना शीशे की ग्लास की तरह टूट जाती है बिखर जाती है
हाँ जनाब सही सुना आपने वो लड़की है।

जन्म के साथ ही उसके सामने खड़ा होता है चुनौतियों का पहाड़
अपने मज़बूत इरादों से तोड़ना चाहती है दशरथ माँझी के पहाड़ की तरह 
समाज में व्याप्त कुरीतियां इस पहाड़ को तोड़ने से रोकती है 
ठीक वैसे जैसे लाल बत्ती को देख के रुक जाती है रेलगाड़ियाँ
हाँ जनाब सही सुना आपने वो लड़की है 

वह लिख देना चाहती है 
अपने क़लम जैसे मज़बूत हथियारों से नए इतिहास को
इतिहास लिखने से पहले ही 
क़लम छिन ली जाती है, तोड़ दी जाती है 
जैसे रैनबसेरों से उनका असियाना छिन कर तोड़ दिया जाता है उम्मीदों को
हां जनाब सही सुना आपने वो लड़की है
       - दिव्यांश 
   दिल्ली विश्वविद्यालय
पूर्ववर्ती छात्र नवोदय विद्यालय 

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