पत्रकारिता के आधारभूत समझ के बिना पत्रकारिता नहीं करनी चाहिए।
मनीष कश्यप जैसे यू ट्यूबर पत्रकारों पर लगाम लगाना जरूरी था। ताकि भविष्य में ऐसी गुस्ताखी कोई नहीं करें जो अफवाह, द्वेष, आहत करने वाली पत्रकारिता करते है। ऐसे स्वघोषित लोगों ने पूरी पत्रकारिता कौम को गर्त में भेजा और इसे बदनाम किया है। मनीष कश्यप ही नहीं बल्कि ऐसे जितने भी यू ट्यूबर पत्रकार है और ऐसे जितने भी मीडिया हाउस है जो अफवाह,द्वेष,आहत आदि करने वाली पत्रकारिता कर रहे है उन सभी पर लगाम कसना बहुत ही जरुरी है।
जब पत्रकारिता के संदर्भित विषयों को पढ़ेंगे तो उसमें सबसे पहले ये बताया जाता है पत्रकारिता के लिए भाषा सहज,सरल होनी चाहिए व भाषा में मुहावरेदार शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। लेकिन आज जिस तरह से ये तथाकथित स्वघोषित पत्रकार है उसे पत्रकारिता का आधार भी नहीं पता है।
कम से कम ग्यारहवीं और बारहवीं की एनसीईआरटी पाठयपुस्तक अभिव्यक्ति और माध्यम भी तो पढ़ लेते ताकि पत्रकारिता का आधार ज्ञान आपको हो जाता। पूहड़बाज और गालीबाज जैसे शब्दों से आप बचते है। एक वाक्य बोल कर धड़ल्ले से गालियां नहीं दे रहे होते।
माइक,कैमरा और धड़ल्ले से बोल लेने से पत्रकारिता नहीं होती है। इसके मुख्य आयाम क्या है? इसकी समझ भी रखना आवश्यक है नहीं तो समाज के भीतर द्वेष,ईर्ष्या,अफवाह फैलाने के अलावे कोई कार्य नहीं बचेगा आपके पास।
हाथ में माइक,कैमरा पकड़ने से पहले पत्रकारिता के बेसिक ज्ञान का अध्ययन कर लो फिर सड़कों पर उतरना और पत्रकारिता करना। इससे सामाजिक और बौद्धिक समझ भी विकसित होगी की पत्रकारिता करने के लिए किन पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत है।
इनकी पत्रकारिता न तो खोजपरक पत्रकारिता होती है, न तो विशेषीकृत, न ही वॉचडॉग पत्रकारिता, न ही एडवोकेसी पत्रकारिता न ही वैकल्पिक पत्रकारिता। इसमें से किसी श्रेणी में आप खुद को सेट नहीं कर पा रहे है। फिर क्या ही मतलब है आपकी पत्रकारिता का?
यदि खोजपरक पत्रकारिता कर के थोड़ी बहुत भ्रष्टाचार, अनियमितताओं को सामने लाते भी है तो वहां आप अपनी काली कमाई और आरोपित व्यक्ति को ब्लैकमेल कर रहे होते है।
विशेषीकृत पत्रकारिता की आत्मा तो आपके अंदर मौजूद है ही नहीं।वॉचडॉग पत्रकारिता का भी आधारबिंदु की समझ नहीं है।
एडवोकेसी पत्रकारिता और वैकल्पिक पत्रकारिता के नाम पर इसके आधारभूत ढांचा का भी ज्ञान होता तो शायद ये सब नौबत नहीं आती।
यदि ऐसे लोगों पर लगाम कसी जा रही है तो यह बिलकुल भी लोकतंत्र के चौथे खंभे पर हमला नहीं है। यह समय की जरूरत और मांग भी है कि पत्रकारिता के बेसिक ज्ञान के बिना द्वेष,अफवाह फैलाने वाले लोग फालतू का पत्रकारिता के नाम पर माइक, कैमरा लेकर सड़कों पर नहीं दिखे। ताकि लोकतंत्र का चौथा खंभा सुचारू रूप से कार्य कर सके।
दिव्यांश गांधी
दिल्ली विश्वविद्यालय
पूर्ववर्ती छात्र नवोदय विद्यालय
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