"हां सावित्री ने वही किया" कविता|
समाज की परंपरा को
सहेजना ही सिर्फ क्रांति नहीं है
बल्कि समाज के पूर्वाग्रह से ग्रस्त
परंपरा को चुनौती देना भी एक क्रांति प्रतीक है
हां सावित्री ने वही किया
अपने मजबूत
इरादों जैसे हथियार से
तोड़ दिए उन सारी परंपरा को
जो समाज की जरूरत नहीं थी
उसने
महिलाओं को सिखाया
घर के भटियारखाने,
घर की चहारदीवारी से बाहर निकलकर
घर की सरहद जैसी चौखटों को लांघ कर
अपने लिए संघर्ष और सफलता के कटीले
रास्ते को कैसे और किस रूप में तय किया जा सकता है?
- दिव्यांश
माता सावित्री बाई फुले को उनकी पुण्यतिथि पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि।🎉🙏
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