देश को एकता और अखंडता के एक सूत्र में बांधने वाली भाषा हिंदी।

हिंदी हमारी दिल की भाषा है जो काश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, सड़कों से लेकर संसद भवन तक, साहित्य से लेकर सिनेमा तक, हर जगह हिंदी एक संवाद का माध्यम है.

भाषा मनुष्यों के बीच परस्पर संवाद  का एक माध्यम है. सरल शब्दों में कहें तो " जिस साधन के द्वारा मनुष्य अपने विचारों और भावों को सरल और सहज रूप में लिखकर या बोलकर प्रकट करता है उसे भाषा कहते हैं. अर्थात आपकी अपनी एक  भाषा विचारों को व्यक्त करने लिए होनी हो सरल और सहज हो.

हिंदी के प्रसिद्ध कवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हिंदी भाषा के महत्व को  बताते हुए अपनी रचना में कहते है:
निज भाषा उन्नति अहै, 
सब उन्नति को मूल, 
बिन निज भाषा ज्ञान के, 
मिटन न हिय के सूल'। 

मतलब मातृभाषा की उन्नति बिना किसी भी समाज की तरक्की संभव नहीं है तथा अपनी भाषा के ज्ञान के बिना मन की पीड़ा को दूर करना भी मुश्किल है.

देश की एकता को सूत्र में बांधने वाली प्यार और दुलार के लिए जाने जानी अत्यंत ही सरल मोहक और मिठास वाली राष्ट्र का गौरव बढ़ाने वाली भाषा हिंदी है. आज के वर्तमान परिपेक्ष्य में हिंदी के सार्थकता पर सवाल उठ जाते है जब कभी आप अहिन्दी भाषी क्षेत्र में जाये तो.

हिंदी भाषा के विकास संबधी विचार के संदर्भ में कहना चाहूंगा हिंदी के इतिहास को समझ कर  वर्तमान समय मे हिंदी की जो स्थिति हुई है यदि ऐसी स्थिति न होती तो हिंदी दिवस मनाने की जरूरत ही न पड़ती है.

इसलिए हास्य व्यंग्य के प्रसिद्ध लेखक  हरिशंकय परसाई ने व्यंगात्मक शैली में कहा है:
 हिन्दी दिवस के दिन,
हिन्दी बोलने वाले, हिन्दी
बोलने वालों से कहते हैं कि
हिन्दी में बोलना चाहिए.

आज हिन्दी एक चुनौतियों से गुजर रही है इसे संजोए और इसके विकास के लिए लगातार हिंदी प्रेमी , साहित्य समाज व सरकार के तरफ़ से कई प्रयास किये जा रहे हैं.

हिंदी के महत्व को बढ़ावा देने के लिए त्रिभाषीय सूत्र अपना अहम भूमिका निभा सकती है. मतलब हिंदी अंग्रेजी के अलावा ऐसी कोई तीसरी भाषा जो किसी अन्य राज्य की भाषा हो जैसे - उड़िया,असमी,बंगाली,उर्दू,तेलगु आदि. 
हिंदी,अंग्रेजी के अलावा तीसरी अन्य भाषा को भी पढ़ाई जाए.

पूरे भारतवर्ष में भाषा विवाद भी कई बार चरम सीमा पार कर चुका होता है वैसी परिस्थिति में जरूरत है कि इन चुनौती से निपटने के लिए त्रिभाषिय सूत्र को लागू कर हम इन चुनौतियों से निपट सकते है और भारत को एकता के बंधन में भाषाई,सांस्कृतिक,राजनैतिक आधार पर जोड़ सकते है.

हिन्दी के प्रति महात्मा गांधी का प्रेम बड़ा गहरा था. हिंदी के प्रति महात्मा गांधी जी के विचार थे:
 राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है.
 इसलिए मातृभाषा हिंदी के विकास में अपना योगदान देकर इसे राष्ट्रभाषा के पद पर सुशोभित कर हिंदी को वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान दिलाने की आवश्यकता है.

आप सभी को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं.😊🙏

-दिव्यांश गांधी

1 टिप्पणी:

राजनीति अल्पकालिक धर्म है और धर्म दीर्घकालिक राजनीति है" : डॉ. लोहिया

डॉ. राम मनोहर लोहिया भारतीय राजनीति के ऐसे प्रखर विचारक थे, जिन्होंने अपने समय में राजनीति और सामाजिक न्याय को एक नई दिशा दी। उन...

Blogger द्वारा संचालित.