यह सूरज भी अस्त हो गया....

चंद्रशेखर प्रसाद उर्फ़ चंदू हां वही चंदू जिसने गांव की पगडंडियों को लांघ कर सैनिक स्कूल जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से अपनी स्कूली शिक्षा को पूरा किया. उच्च शिक्षा हेतु पटना विश्वविद्यालय व जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में दाखिला लिए.

उन्होंने एक बार कहा था हाँ, मेरी व्यक्तिगत महत्वकांक्षा है- भगत सिंह की तरह जीवन और चे ग्वेरा की तरह मौत.

जेएनयू में अपने समय के दौरान, वह 1993 में छात्र संघ के उपाध्यक्ष चुने गए और अंततः लगातार दो बार उसी संस्थान से जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए.

चंदू की लोकप्रियता लगातार बढ़ते जा रही थी. उन्होंने बिहार लौटने का फैसले किया और एक वक्त आता है जब 31 मार्च 1997 को भाकपा माले के आंदोलन को सफल बनाने के लिए सिवान के जेपी चौक पर वो थे.

उस समय शहाबुद्दीन के खिलाफ आवाज बुलंद करने की हिम्मत किसी में नहीं होती थी.चंद्रशेखर उर्फ चंदू ने वो आवाज उठाई और उसी चौराहे पर नुक्कड़ सभा के दौरान गोलियों से भून दिया और शहाबुद्दीन के खिलाफ उठने वाली आवाज हमेशा के लिए शांत कर दिया गया।

चंदू की मौत की खबर सुनते ही पूरा देश खास कर युवा वर्ग आंदोलित हो उठा. बिहार सिवान की सड़कों से लेकर दिल्ली प्रधानमंत्री कार्यालय तक लोग आंदोलित थे.

चंदू युवा पीढ़ी के आदर्श थे. शहीद जगदेव बाबू, शहीद जगदीश मास्टर की तरह यह सूरज भी अस्त हो गया. 

चंद्रशेखर प्रसाद उर्फ चंदू दादा को उनके जन्मदिवस पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि.🙏🙏

-दिव्यांश गांधी

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