मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान समय की मांग
वर्तमान परिदृश्य यह है कि देश में लगातार मासूम बच्चियों के साथ बलात्कार, युवतियों के साथ गैंगरेप सह हत्या, इंजीनियरिंग, मेडिकल, विभिन्न परीक्षाओं के अभ्यर्थी छात्रों द्वारा आत्महत्या अथवा अपने साथी की हत्या जैसे कृत्य मामलों के रुप में हर रोज समाचारपत्रों व मीडिया की किसी न किसी सुर्खी में नजर आ रहे हैं। बलात्कार, गैंगरेप, निर्मम हत्या स्पष्ट शब्दों में अमानवीयता व असंवेदनशीलता का चरम स्तर व समाज का घिनौना रुप है हालांकि इसके लिए फांसी जैसे कठोर प्रावधान भी कानून सुनिश्चित करता है। परंतु इन कानूनों के होने के बावजूद बलात्कार, हत्या, आत्महत्या जैसे अपराधों में लगातार वृद्धि प्रश्नचिन्ह लगाती है, तथा सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर ऐसा क्यों? और कब तक? हालिया हालातों पर गहनता से विचार करें तो वैज्ञानिक दृष्टिकोण सिक्के के दूसरे पहलू की तरफ ध्यानाकर्षण करते हुए किशोर बच्चों , युवक युवतियों में गिरते मानसिक स्वास्थ्य की ओर संकेत करता है। कोरोना महामारी के बाद मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ मौजूदा समय की सबसे विकट चुनौती के रूप में व्याप्त हैं जो बच्चों, युवाओं के सम्पूर्ण चहुँमुखी विकास, सुरक्षा संरक्षा और बेहतर स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है। वैश्विक स्तर पर मनोचिकित्सकों, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी शोधकर्ताओं, माता-पिता, अभिभावकों व शिक्षकों के मानसिक स्वास्थ्य के गिरते स्तर व सुधारने के प्रयासों की तरफ ध्यानाकर्षण हेतु हर वर्ष 20 सितम्बर को विश्व बाल दिवस मनाया जाता है । इस समस्या के समाधान हेतु ग्रीन पेंसिल फाउंडेशन जैसे अनेकों गैर सरकारी संगठन राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयासरत है। परंतु भारत के संदर्भ में बाल मनोरोग संबंधी आंकड़े दहलाने वाले है इंडियन जनरल ऑफ साइकियाट्री की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 5 करोड से अधिक बच्चे मानसिक रोग जैसी समस्याओं से गृसित हैं एवं इनमें से अधिकतम 20 प्रतिशत बच्चों के घर-परिवार बाले इन समस्याओं को समझ कर इनकी ओर गंभीरता से ध्यान दे पाते हैं जोकि निश्चित रूप से चिंता का विषय है तथा देश के उज्ज्वल भविष्य बच्चों व युवाओं के सम्पूर्ण जीवन पर नकारात्मक असर डाल रहा है एवं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित गरिमामयी जीवन व अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति में बाधक है। भारत जोकि वसुधैवकुटुबंकम, हम सब भारतीय आपस में भाई-बहिन हैं जैसे आदर्शों को अपनी सामासिक संस्कृति व नैतिकता से परिपूर्ण संस्कारों में समाहित करने वाला देश है लेकिन कितनी वृहद विडम्बना है कि उसी देश में उन बहिनों के बलात्कार, गैंगरेप, निर्मम हत्या, जैसे कुकृत्य निरंतरता के साथ घटित होते हैं, दूसरी तरफ भारत को ग्लोबल लीडर, विश्व गुरु की राह पर तीव्रगति से अग्रसर करने में सहायता करने की संभावनाओं,क्षमताओं,प्रतिभा का सागर अपने अंदर समेटे एक इंजीनियर, मेडिकल छात्र, एक प्रतियोगी छात्र अभ्यर्थी आत्महत्या कर लेता है जो देश के लिए एक जनहानि के साथ साथ एक बड़ी बौद्धिक संपदा की भी अपूर्णीय क्षति है। भारतीय संस्कृति, संस्कार, नैतिक आदर्शों वाले मूल्य ऐसे भयानक व वीभत्स परिणाम कभी नहीं दे सकते एवं ना कभी अपेक्षित है, ये मानसिक स्वास्थ्य की गिरती स्थिति एवं मनोरोगों का ही परिणाम है जो उनके बुद्धिबल, विवेक, नैतिक मूल्यों, आदर्शों आदि के समस्त भावों को शून्य कर देता है। और देश का यह बाल, युवा रूपी भविष्य जागरूक व सक्षम पुष्प सा खिलने के बजाय अपराधी बनकर फांसी का हकदार बन मुरझा जाता है। वर्तमान आलम यह है कि मनोरोगों की ये समस्या दिन-प्रतिदिन लगातार और गंभीर होती जा रही है। जमीनी स्तर पर इसके लिए जागरूकता सहित अगर संगठित प्रयास त्वरित प्रभाव से नहीं किये गए और हमारी जिम्मेदार सरकारों व नीति-निर्माताओं ने ठोस कदम उठाते हुए मानसिक स्वास्थ्य को मुख्य एजेण्डे के तौर पर शामिल कर अगर योजनाऐं न तैयार की तो भविष्य में दूरगामी परिणाम अत्यंत नकारात्मक व प्रलय जैसी विभीषिका निहित करने वाले साबित होंगे । परिवार स्तर पर माता-पिता व अभिभावकों को इस समस्या की गंभीरता को भलीभाँति समझना होगा तथा बच्चों, किशोरों व यूवाओं के व्यवहार, भावनाओं को समझने का हर संभव प्रयास करते हुए लगातार उनसे संवाद कर आत्मीय जुडाव स्थापित करना होगा, उपरोक्त स्थितियों का असामान्य व्यवहार नजर अंदाज हरगिज़ न किया जाए। अक्सर एक मानसिक स्वास्थ्य से पीड़ित बच्चा अथवा युवा पहले जिन गतिविधियों में आनंद अनुभव करता था वह उनसे दूरी बनाने लगता है, शांत व उदास, चिडचिडापन, अत्यधिक गुस्सा या डरा हुआ सा रहना ऐसी स्थितियां अथवा इनका लगातार बढता स्तर मानसिक स्वास्थ्य की गंभीर स्थिति की ओर शुरुआती संकेत हैं। वर्तमान के भौतिकवादी व उपयोवादी समाज में जीवन की ऊहापोह, भागदौड़ भरी जिंदगी में माता-पिता अपने बच्चों पर ध्यान यदाकदा ही दे पा रहे हैं गंभीरता से ध्यान देने वाले अभिभावकों की संख्या बहुदा नगण्य ही है परिणामस्वरूप बच्चों में उपरोक्त समस्याओं में बढोत्तरी का आधारभूत कारक बन जाते हैं और इस तरह का पारिवारिक स्तर पर प्रतिकूल माहौल बच्चों को अपनी समस्याओं को साझा करने में भी असहज महसूस कराता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बच्चों व माता-पिता की फोन व शोसल मीडिया से अत्यधिक नजदीकी बच्चों में रचनात्मकता को कमजोर करने के साथ उन्हें अपनी हमउम्र साथियों 'पीयर ग्रुप' से अलग कर रहा है तथा माता-पिता में ममत्व-पितृत्व भाव को क्षीण करते हुए बच्चों के समाजीकरण के लिए आवश्यक संवाद के मध्य एक गहरी खाई निर्मित करता हुआ प्रतीत हो रहा है जिससे सहज बालमन लगातार असहज होता जा रहा है। समय रहते अभिभावकों को समय की मांग को समझते हुए आवश्यक है कि वे बच्चों पर पढाई तथा अन्य जिम्मेदारियों का अनावश्यक दबाव न डालें बजाय इसके बच्चों व युवाओं को उनकी क्षमताओं के अनुकूल कार्य करने व प्रदर्शन करने हेतु प्रोत्साहित कर उन्हें सकारात्मक बनाने का निरंतर प्रयास करें एवं लगातार बच्चों को भावनात्मक जुडाव महसूस कराएं, उनसे हर रोज बात करें व उनके आसपास चल रही घटनाओं पर उनके साथ शालीनता से सकारात्मक चर्चाएं करें।ऐसा करना बच्चों के लिए मानसिक शांति प्रदान करने वाली किसी थेरेपी की तरह कार्य करेगा। किसी भी प्रकार की गलती होने पर बच्चों के साथ मार-पीट या डांटने जैसे सख्त व्यवहार से हमेशा बचें अन्यथा यह बच्चों को नकारात्मक बनाते हुए अपराधबोध से भर सकता है जो मानसिक स्वास्थ्य को कमजोर करने का कारण बनेगा। आवश्यकता है कि आप एक सच्चे दोस्त के भाव से उन्हें गलतियों तथा चुनोतियों से कैसे जूझना है, सिखाने का प्रयास करें। उन्हें समझाएँ कि किशी भी प्रगतिशील कार्य में समस्याओं व चुनोतियों का होना स्वाभाविक है, आपका अगला बेहतर प्रयास आपको उत्कृष्ट परिणाम देते हुए सफलता की ओर ले जाएगा। ऐसा आपको ऐक जागरूक बेहतर माता-पिता, बुद्धिजीवी शिक्षक, सजग अभिभावक बनाने के मार्ग को प्रशस्त करेगा तथा आपके नन्हे प्यारे बच्चों, युवाओं को सकारात्मक सोच, ऊर्जावान,सुदृढ़ व गरिमामयी जीवन प्रदान करने में अवश्य सहायक होगा। इस प्रकार इन समाधानों की आकांक्षाओं के लिए समर्पित विश्व बाल दिवस की सार्थकता को सिद्ध करने में भी आपका प्रयास मील का पत्थर के रूप में चिन्हित होगा एवं भारत के साथ वैश्विक स्तर पर मानसिक रोगों से उभरने में समेकित नेत्रत्व बन आगे बढने में मदद करेगा।
द्वारा: नीतेश यादव छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय
बहुत बहुत शुक्रिया💚💚
जवाब देंहटाएं