विश्वविद्यालयों का उद्देश्य छात्रों को एक व्यापक, संतुलित और समावेशी शिक्षा देना है।

विश्वविद्यालयों में विचारधारा का प्रसार प्रसार एक जटिल और विवादास्पद मुद्दा माना जा सकता है, क्योंकि यह संस्थान के स्वतंत्र और निष्पक्ष माहौल पर गंभीर प्रभाव डालता है। विचारधारा का विष, जब शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश करता है, तो इसका असर छात्रों पर व्यापक और दीर्घकालिक होता है। यहां से द्वेष की भावना पैदा होती है।

विश्वविद्यालयों का उद्देश्य छात्रों को एक व्यापक, संतुलित, और समावेशी शिक्षा देना है। जब हम किसी विचारधारा को प्रमुखता देते हैं, तो यह शिक्षा के सभी मूल उद्देश्य को कमज़ोर करता है। यह छात्रों के लिए महत्वपूर्ण है कि वे विभिन्न दृष्टिकोणों से परिचित हों, ताकि वे अपने विचार और दृष्टिकोण खुद से विकसित कर सकें।

इस दौरान छात्र इतने परिपक्व जरूर हो जाते हैं कि वह किसी राजनीतिक पार्टी और विचारधारा के बिना अपने मुद्दे को लेकर सजग रहते हैं और किसी अन्याय और जुल्म को लेकर एकजुटता के साथ एक दूसरे के साथ खड़े मिलते हैं। इसका एक हालिया उदाहरण है राजेंद्र नगर में UPSC Aspirants के द्वारा किए गए प्रोटेस्ट का।

जब कोई छात्र किसी विचारधारा से प्रभावित होता है तो उन छात्रों का इस वजह से मानसिक और बौद्धिक विकास प्रभावित हो सकता है। उनके विचारों की स्वतंत्रता छिन जाती है और वे आलोचनात्मक सोच से वंचित हो जाते हैं। जिन गंभीर मुद्दे पर बोलना की जरूरत भी होती है तो वहां वह मौन धारण कर लेते हैं।

वर्तमान में व पूर्व में भी एक विशेष विचारधारा का संस्थानों में हावी होना शैक्षिक स्वतंत्रता के लिए खतरनाक है/था। यह न केवल पाठ्यक्रमों में, बल्कि शिक्षण और शोध कार्यों में भी ये झलक दिखती है।

विश्वविद्यालय मात्र शिक्षा का संस्थान नहीं हैं, यह संस्थान समाज के भविष्य के निर्माण का भी कार्य करते हैं। जब इन संस्थानों में विचारधारा का विष फैलता है, तो इसका असर समाज पर भी पड़ता है। जिस उम्र में इन छात्रों को हर विचारधारा के बारे में पढ़ना चाहिए वह किसी एक विचारधारा में जिंदगी भर उलझ कर रह जाते हैं।

विश्वविद्यालयों में किसी भी प्रकार के विचारधारा का प्रसार एक गंभीर चिंता का विषय है। यह छात्रों के बौद्धिक विकास, शैक्षिक स्वतंत्रता, और समाज पर व्यापक प्रभाव डालता है। 

~दिव्यांश गांधी

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