मंडल कमीशन और ठाकुर वी पी सिंह...
मंडल कमीशन और वी पी सिंह
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राजनीति एक पहेली की तरह है। कई बार हर चीज को बारीकी से समझने के बावजूद भी उस पहली का शुद्ध उत्तर आपको पता नही होता है। महारानी वेब सीरीज का एक प्रसिद्ध डायलॉग तो आपको याद ही होगा "जब-जब आपको लगेगा कि आप बिहार की राजनीति को समझ गए, बिहार आपको झटका देता है" यह बिहार ही नही बल्कि पूरे देश की राजनीति के संदर्भ में लागू होती है।
1990 का दौर मंडल बनाम कमंडल/मंदिर की राजनीति का दौर था। 1980 में भारत के राष्ट्रपति को सौंपे गए मंडल कमीशन की रिपोर्ट एक दशक से अधिक समय से धूल फांक रही थी। इस समय इंदिरा गांधी और राजीव गांधी का कालखंड था।राजीव गांधी ने मंडल कमीशन के रिपोर्ट को " कीड़ों का पिटारा" कहकर लागू करने से मना ही नही बल्कि इसको चर्चा में लाने से भी परहेज किया। क्योंकि उनकी बनी बनाई सवर्ण बैंक टूट जाता।
1990 में वीपी सिंह की अल्पमत वाली राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनी। एक तरफ उन्हें वाम दल का समर्थन था तो दूसरी तरफ भाजपा जैसी महत्त्वाकांक्षी दल का समर्थन था। वीपी सिंह की जनता पार्टी ने कुल 143 सीटें जीती थीं।उनको यह अच्छे पता था कि भाजपा ज्यादा समय तक अपना समर्थन नही दे सकती है क्योंकि वह खुद सरकार बनाने के स्वप्न देख रही थी।
1989 का लोकसभा चुनाव पार्टी के घोषणा पत्र में व उनके चुनावी भाषण बोफोर्स घोटाला,भ्रष्टाचार,वंशवाद पर मुख्य रूप से केंद्रित था। वही घोषणा पत्र के एक कोने में मंडल अयोग का जिक्र था,जिसका वीपी सिंह ने अपने भाषणों और रैलियों में खुलकर कभी जिक्र नही किया न ही उसको उजागर किया।
वीपी सिंह मंडल कमीशन के सिफारिशों को लागू कर अपने सुनहरे राजनीतिक भविष्य का स्वप्न देख रहे थे।उन्हें लग रहा था 52% ओबीसी वोट बैंक का जो नेता बन गया वह राजनीति में अजेय हो जायेगा। लेकिन इसके ठीक विपरीत हुआ वह सवर्ण जातियों के लिए खलनायक के रूप में उभरे वहीं ओबीसी जाति से नहीं होने की वजह ओबीसी के भी वह नेता नहीं बन पाए। जो मान सम्मान ओबीसी समूह से मिलना चाहिए वो भी वीपी सिंह को नही मिल सका।
जब वीपी सिंह ने आयोग के रिपोर्ट को लागू करने का फैसला लिया तो यह कार्य उप प्रधानमंत्री रहे देवी लाल को सौंपा,उन्होंने इस रिपोर्ट के संदर्भ में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई क्योंकि उनकी कोर जाट वोटर इससे बाहर थी। इसकी जिम्मेदारी उन्होंने उस समय के तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री राम विलास पासवान के हाथों सौंपी। 7 अगस्त 1990 को वीपी सिंह की सरकार ने मंडल आयोग के सिफारिशों सार्वजनिक क्षेत्र और सरकारी विभागों की नौकरियों के लिए 27% आरक्षण को लागू कर दिया।
इसके पश्चात ही उन्होंने न सिर्फ सवर्ण वोट बैंक का जनाधार खोया बल्कि ओबीसी समूह के भी नेता नही बन पाएं। यहां से उनके राजनीतिक शून्य की शुरुआत होती है। भारतीय राजनीति के इतिहास में इन्हें उनकी ही स्वजातीय समूह के द्वारा गद्दार और जयचंद की उपाधि से नवाज़ कर उनका मजाक उड़ाया गया।
विरोध के बढ़ते स्वर को देख कर बिहार में लालू यादव और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव ने मंडल कमीशन विरोधी आंदोलनों को दबाने के लिए खुलकर मंडल कमीशन के पक्ष में अपनी बाते रखने लगे। उस समय मंडल कमीशन के सिफारिशों को लागू करने में इनकी भूमिका नगण्य मानी जाती है।
भाजपा जैसी महत्वाकांक्षी पार्टी को अहसास हो गया कि उनकी मूलभूत वोट बैंक जो सवर्ण वोट बैंक है वो टूट जायेगा और यदि मंडल कमीशन का विरोध करेंगे तो 52 % वाली ओबीसी आबादी नाराज हो जायेगी। भाजपा ने जनता दल सरकार से समर्थन वापस लेने के लिए मंदिर/कमंडल पॉलिटिक्स यानी हिंदुत्ववादी राजनीति के रूपरेखा को तैयार करने में जुट गई। जिसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा का आयोजन किया।
लाल कृष्ण आडवाणी लगातार वीपी सिंह को चुनौती दे रहे थे कि वो उन्हे गिरफ्तार करवाए। तमाम हिंसक गतिविधि के वाबजूद आडवाणी की गिरफ्तारी वीपी सिंह नहीं करवा सके। आडवाणी की गिरफ्तारी का परिणाम वीपी सिंह को अच्छे से पता था कि उनकी सरकार गिर जायेगी और प्रधानमंत्री की कुर्सी उनके हाथों से निकल जायेगा।
23 अक्टूबर 1990 को आडवाणी को रथ यात्रा बिहार पहुंचती है और जो साहस वीपी सिंह नहीं दिखा पाए वह साहस लालू यादव कर दिखाते और आडवाणी की गिरफ्तारी समस्तीपुर से होती है। लालू यादव को सरकार को भाजपा से कोई खतरा नहीं था क्योंकि वह भाजपा पर निर्भर नही थे। गिरफ्तारी के ठीक बाद भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया।
मंडल बनाम मंदिर/कमंडल पॉलिटिक्स के संदर्भ में जार्ज फर्नांडिस ने अपने वक्तव्य में कहा था "मंडल कमीशन को लागू करने के एलान के ठीक 48 घंटे बाद लाल कृष्ण आडवाणी खुद मुझसे कहते है कि जार्ज साहेब आपने हमारे सामने कोई विकल्प नहीं रखा है। हमारे सामने अब एकही रास्ता है कि अब हम हिंदुत्व का यानि मंदिर और मस्जिद की पृष्ठभूमि को तैयार कर लोगों के सामने जाने का काम करेंगे।"
वीपी सिंह कुल मिलाकर भोलेनाथ की तरह विष का प्याला पिया था। जिसका दूरगामी परिणाम उनकी सोच के ठीक उलट पलट था।
क्रमशः
Nice 🙂
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