राहुल गांधी की 'मोहब्बत की दुकान' सवालों के घेरे में।

तस्वीर: पूर्व कांग्रेस सांसद से भाजपा के बागी बने चौधरी लाल सिंह

कठुआ रेप कांड के आरोपी के समर्थन में तिरंगा रैली निकालने वाले लाल सिंह का नाम तो आपने सुना ही होगा।लाल सिंह वही हैं जिन्होंने कठुआ रेप मामले में न केवल आरोपियों का समर्थन किया बल्कि आरोपी के समर्थन में तिरंगा यात्रा भी निकाला।

अब जब कांग्रेस ने उन्हें जम्मू की बसोहली सीट से उम्मीदवार बनाया है जिसे देखकर राहुल गांधी की 'मोहब्बत की दुकान' की बात खुद ही सवालों के घेरे में आ जाती है।

राहुल गांधी कहते हैं कि वह 'नफरत के बाजार' के खिलाफ 'मोहब्बत की दुकान' खोल रहे हैं। लेकिन शायद यह मोहब्बत सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए है जो उनके राजनीतिक स्वार्थ को आगे बढ़ा सकते हैं। लाल सिंह को टिकट देकर कांग्रेस ने यह साफ कर दिया कि उनकी मोहब्बत की दुकान में अब "कठुआ कांड के समर्थक" भी आराम से बैठ सकते हैं। यह देख कर ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस अपने 'मोहब्बत की दुकान' को किसी वोट बैंक के सुपरमार्केट में बदलने की योजना बना रही हो जहां हर तरह की विचारधारा और व्यक्तित्व का स्वागत है बस उनका उपयोग वोट बटोरने में हो सके।

आप समझ सकते है कि लाल सिंह का यह नया राजनीतिक अवतार कांग्रेस के साथ गठजोड़ के बारे में दर्शाता है कि "मोहब्बत की दुकान" का मतलब क्या है? यह एक ऐसा दृश्य है जिसमें नेता एक तरफ 'मोहब्बत' का चश्मा लगाए घूम रहे हैं, तो दूसरी तरफ उसी मोहब्बत की आड़ में लोगों को बेवकूफ बनाते जा रहे हैं।

तो, क्या राहुल गांधी की 'मोहब्बत की दुकान' वाकई में मोहब्बत बेच रही है या फिर यह सिर्फ चुनावी मार्केटिंग का एक और गुब्बारा है? शायद कांग्रेस को खुद यह सोचने की जरूरत है कि कहीं इस दुकान पर 'छूट' के साथ 'नफरत' तो नहीं बेची जा रही।

एक तरफ राहुल गांधी "नफरत के बाजार" को बंद करने की बात करते हैं और दूसरी तरफ उन्हीं की पार्टी ऐसे शख्स को टिकट दे रही है, जिसने कठुआ जैसे जघन्य अपराध के आरोपी के समर्थन में खुलकर मोर्चा निकाला था। आखिर ये कैसी मोहब्बत है?
 ~~दिव्यांश गांधी


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