विश्वविद्यालय में नए छात्र और छात्र संगठन।

प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में प्रवेश लेना हर छात्र के जीवन का एक सपना होता है। यहां न केवल एक शैक्षिक यात्रा की शुरुआत होती है, बल्कि यह Self Development,Social Network बनाने और जीवन के सभी महत्वपूर्ण सबक सीखने का भी समय होता है। 

लेकिन, इस नई और अपरिचित दुनिया में प्रवेश करने वाले छात्र अक्सर ऐसे अनुभवों और चुनौतियों का सामना करते हैं जिनसे वे अनजान होते हैं। उनमें से एक है प्रवेश के पहले ही दिन छात्र संगठनों के द्वारा भावनात्मक बहकावे का शिकार होना।

विश्वविद्यालय में प्रवेश करने के बाद नए छात्र आमतौर पर खुद को विद्यालय के संकुचित माहौल से अलग पाते हैं व एक बड़े और अपरिचित माहौल में पाते हैं। इस स्थिति में उनके मन के अंदर किसी समूह का हिस्सा बनने की तीव्र इच्छा महसूस होती है।यह वह समय होता है जब विभिन्न छात्र संगठन अपने विचारधाराओं और उद्देश्यों के प्रचार-प्रसार के लिए सक्रिय हो जाते हैं। ये संगठन अपनी विचारधाराओं को नए छात्रों के बीच फैलाने के लिए कई प्रकार के माध्यमों का उपयोग करते हैं, जैसे कि सेमिनार, कुछ सोशल Activities और Personal Communication यहां तक कि प्रलोभन जैसा कुछ कार्य। इन Activities के माध्यम से वे नए छात्रों को अपने समूह में शामिल होने के लिए प्रेरित करते हैं और सफल भी होते हैं।

नए छात्रों के मन में कई प्रकार की चिंताएं और सवाल होते हैं, जैसे कि क्या सही है? क्या गलत है? किसका अनुसरण करना चाहिए? और किससे दूर रहना चाहिए? इस भ्रम की स्थिति में जब छात्र संगठन उन्हें एक स्पष्ट और सीधा मार्ग दिखाते हैं तो वे इसे सच मान लेते हैं। संगठन अपने प्रचार में ऐसी भावनाओं का सहारा लेते हैं जो छात्रों के अंदर स्वाभाविक रूप से होती हैं, जैसे कि न्याय की भावना, सामाजिक परिवर्तन की इच्छा, या किसी विशेष मुद्दे के प्रति संवेदनशीलता।

जब छात्र संगठन इन भावनाओं को भुनाते हैं तो छात्र अपनी व्यक्तिगत सोच और समझ के बजाए संगठन की विचारधारा को ही शत प्रतिशत सही मानने लगते हैं। इस प्रकार वे संगठन के उद्देश्यों और लक्ष्यों को अपने व्यक्तिगत विचारों और आकांक्षाओं से ऊपर रखने लगते हैं। यह स्थिति तब और अधिक जटिल हो जाती है जब संगठन छात्रों को उनके हितों और भावनाओं के माध्यम से कॉलेज के प्रथम दिन से ही नियंत्रित करने लगते हैं।

भावनात्मक बहकावे के शिकार होने का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि छात्र कॉलेज के पहले दिन से ही अपनी स्वतंत्र सोच और विचारधारा को खोने लगते हैं। वे संगठन के विचारों के प्रति इतने समर्पित हो जाते हैं कि भविष्य में उन्हें सही और गलत का अंदाजा करना मुश्किल हो जाता है। 

इसके अलावा वे अपने शैक्षिक उद्देश्यों से भी भटक जाते हैं, क्योंकि संगठन की गतिविधियों में भाग लेने और उसके लक्ष्यों को पूरा करने में उसका सर्वाधिक समय और ऊर्जा लग जाता है। वही भावनात्मक बहकावे का शिकार छात्र कई बार सामाजिक ध्रुवीकरण का भी सामना करते हैं। वे अन्य विचारधाराओं और संगठनों के प्रति असहिष्णु हो जाते हैं, जो समाज में एक विभाजनकारी सोच को जन्म देता है।

नए छात्रों को चाहिए कि वे अपने ठंडे दिमाग का प्रयोग करें और किसी भी संगठन का हिस्सा बनने से पहले उसके उद्देश्यों, विचारधारा और कार्यप्रणाली का गहराई से मूल्यांकन करें।

वो विभिन्न विचारधाराओं का अध्ययन करें, खुले दिमाग से विचारों का आदान-प्रदान करें और किसी भी संगठन के प्रति भावनात्मक रूप से जुड़ने से पहले अपनी व्यक्तिगत सोच और विश्लेषण की क्षमता का प्रयोग करें।

विश्वविद्यालय एक ऐसी जगह होती है जहां छात्रों को न केवल शैक्षिक ज्ञान प्राप्त होता है बल्कि उनके अंदर स्वतंत्र रूप से सोचने और खुद से निर्णय लेने की भी क्षमता भी विकसित होती है। छात्र संगठनों का हिस्सा बनना एक सकारात्मक अनुभव हो सकता है, बशर्ते छात्र स्वयं की विचारधारा और निर्णय की क्षमता को बरकरार रखें। 

अंतिम सत्य यही है कि वह संगठन के भावनात्मक बहकावे से वह बच नहीं पाते हैं।

~~दिव्यांश गांधी

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