स्वर्णिम भारत के आजादी के 75वर्षों के बाद का भारत

राजस्थान से निकलने वाली पत्रिका में मेरे द्वारा लिखे लेख को   Digital Bhaskar Patrika News  के संपादकीय पेज में जगह दिया| एक छोटी सी कोशिश व्याकरण की थोड़ी अशुद्धियां हो सकती है| लेख 1साल पहले मेरे द्वारा स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लिखी गई थी। आज भी हालात बदले नहीं है।
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शीर्षक:    स्वर्णिम भारत के आजादी के 75वर्षों  के बाद का भारत

अगर आज हमारा तिरंगा आजादी के इतने वर्षों बाद भी बड़े आन बान शान के साथ लहरा रहा है| इसका पूरा श्रेय हमारे देश के वीर सैनिकों को, स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले हर एक नागरिकों को, इस आजादी की लड़ाई में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेने वाले महिला-पुरुष बच्चे-बूढ़े व नौजवानों  को जाता  है|जो हर कठिन व विषम परिस्थितियों को सहकर भारत माता के इस तिरंगे के लिए अपने खून से इतिहास लिखने के लिए तैयार रहते है| आज उन्हीं के शौर्य और पराक्रम के बदौलत आजाद देश में आजाद नागरिक के रूप में आजादी की सांस ले रहे हैं और गुलामी के उन बेड़ियों  से पूर्ण रूप मुक्त है|

आज आजाद भारत की बात करेंगे| हां,आजादी के 74 वर्षों के बाद के भारत की बात करेंगे आजादी के 74 वर्षों के बाद के भारत में भी आमजन की स्थिति परिस्थिति काफी दुखदायी,सोचनीय व विचारणीय  है|

 15 अगस्त 2021 को हम सभी भारतवासी भारत माता के तिरंगे के नीचे खड़े होकर आजादी के 75 वीं वर्षगांठ को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मना रहे होंगे| सचमुच यह पावन दिन स्वर्णिम है| लेकिन आजादी के 74वर्षों बाद भी हम भारतवासी कंधे से कंधा मिलाकर  चलने में भी कहीं ना कहीं लड़खड़ा जाते हैं| क्योंकि आज के भारत में लगातार  शिक्षा का निजीकरण हो रहा है गरीब गरीब होते जा रहे हैं अमीर अमीर होते जा रहे हैं गरीबी और अमीरी की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है|

महिलाएं गरीब तबके के लोग आज भी गांव,घर ,समाज में घुटन के माहौल में जी रहे है| आज भी समाज के अंदर कई तरह की सामाजिक कुरीतियों का बोल बाला है दहेज प्रथा,शोषण ,मृत्यु भोज आदि| आजादी के इतने वर्षों के बाद भी भारत में यदि आमजन खुद को आजाद महसूस करते तो कहीं न कहीं देश की राजधानी दिल्ली में निर्भया जैसे कांड व हाल ही में दिल्ली में घटी घटना  बच्ची के साथ जो हैवानियत की गई इसके अलावे न जाने कई दरिंदगी होती रहती है जो मानवता को शर्मसार कर देने वाली होती है| 

क्या ऐसे ही आजाद भारत का सपना था? ऐसी घटनाएं आजाद भारत में कहीं न कहीं मानवता को शर्मसार कर देने वाली घटनाएं में से है| आज गरीबी भुखमरी भारत के आम जनमानस में एक आम समस्या सी बन कर रह गई है| एक बहुत बड़ा तबका एक वक्त के सुखी रोटी के लिए भी दर दर  की कई ठोकरें खा रहा है| सरकारी संस्थानों में भी भ्रष्टाचार व्याप्त है|

यह आजादी,यह आजाद भारत हमें कोई उपहार स्वरूप नहीं मिली है| इस आजाद भारत को पाने के लिए लाखों कुर्बानियां दी गई है ताकि आने वाली पीढ़ी स्वच्छंद व आजाद होकर आजाद भारत में आजादी की हवा ले सके और अपने विचारों के माध्यम में समाज का कल्याण कर सके| आजादी का मतलब सिर्फ आजाद होना ही मात्र नहीं होता है| आजादी के उन कर्तव्यों को निभाना और उसका पूरी निष्ठा और श्रद्धाभाव से उन कर्तव्यों का निर्वहन करना जरूरी है जिसकी जरूरत आजाद भारत के अंदर आजाद देश के नागरिकों को है| 
महशूर शायर इकबाल ने कहा था:
    "वतन की फिक्र कर नादां मुसीबत आने वाली है 
     तेरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में, 
     न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिंदोस्तां वालो, 
     तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दास्तानों में। "

भारत देश युवाओं का देश है| आज वर्तमान परिपेक्ष में युवाओं को एक शक्ति के रूप में देखा जाता है| युवा किसी राष्ट्र का एक मजबूत स्तंभ के रूप में है| यदि युवा शक्ति ठान ले हमें भारत को गरीबी,भुखमरी,बेरोजगारी,शोषण, सामाजिक कुरीतियों आदि को पूर्ण रूप से मिटा कर एक नए  विकसित भारत और समृद्ध भारत को बनाना है तो इन युवा शक्ति को नए भारत के निर्माण हेतु  दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती है| यह  शक्ति आज की युवा पीढ़ी में है|  प्रसिद्ध कवि गोपाल सिंह नेपाली ने ठीक ही कहा है:
 " कर्णधार तू बना तो, हाथ में लगाम ले
   क्रांति को सफल बना, नसीब का न नाम ले
   भेद सर उठा रहा, मनुष्य को मिटा रहा,
   गिर रहा समाज , आज बाजुओं में थाम ले
   दे बदल नसीब , तू गरीब का सलाम ले!"

अपना देश,अपनी माटी किसे प्यारा नहीं होता है? अपना देश अपनी माटी सबको प्यारा है| समाज में व्याप्त सामाजिक कुरुतियों, शोषण आदि से मुक्त करने की भी जिम्मेदारी हमारी है इसे जिम्मेदारी मात्र न समझा जाए इसे अपना मौलिक कर्तव्य समझे और समाज के अंदर व्याप्त सामाजिक बुराइयों को खत्म का एक नए और अखंड भारत के निर्माण हेतु एक दूसरे का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दे| भारत को  बुलंदियों पर ले जाने का सपना महापुरुषों ने देखा था उन सपनों का साकार कर अखंड भारत का निर्माण करने की जिम्मेदारी आज के वर्तमान पीढ़ी पर है|
राहत इंदौरी जी लिखते है:
   " हम अपनी जान के दुश्मन को भी जान कहते है
    मोहब्बत के इसी मिट्टी को हम हिंदुस्तान कहते है|
      ~ दिव्यांश 
पूर्व छात्र नवोदय विद्यालय जमुई
 पूर्व छात्र पटना कॉलेज (राजनीति विज्ञान विभाग)
वर्तमान छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय (हिन्दी पत्रकारिता)

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